मुंबई में हिंदी भाषियों पर हमला: क्या भाषा के नाम पर बढ़ रही असहिष्णुता भारत की एकता को चुनौती दे रही है?

मुंबई में हिंदी भाषियों पर हमला: क्या भाषा के नाम पर बढ़ रही असहिष्णुता भारत की एकता को चुनौती दे रही है?

By- Roshan Kumar | Time - 02:15 AM
राज्य और शहर | महाराष्ट्र  | Date - 25/05/25

हाल ही में मुंबई और आसपास के इलाकों में हिंदी भाषी मजदूरों पर हो रहे हमले चिंता का विषय हैं। यह सवाल उठता है कि क्या भारत जैसे विविधता भरे देश में भाषा की पहचान इंसानियत से बड़ी हो गई है? यदि संवाद और सहिष्णुता को जगह न मिली, तो हमारी राष्ट्रीय एकता खतरे में पड़ सकती है। अब ज़रूरत है समझदारी, प्रेम और जिम्मेदार मीडिया की।


मुंबई में हिंदी भाषियों पर हमला क्या भाषा के नाम पर बढ़ रही असहिष्णुता भारत की एकता को चुनौती दे रही है


महाराष्ट्र | मुंबई

ब भी मैं “भारत” का नाम लेता हूँ, मन में एक छवि उभरती है — रंगों से भरा देश, जहाँ हर भाषा, हर संस्कृति और हर परंपरा को अपनाया जाता है। लेकिन आज मन थोड़ा भारी है। क्योंकि यह वही भारत है जहाँ एक इंसान को सिर्फ इसलिए पीटा जा रहा है क्योंकि उसने "हिंदी" में बात की।

मुंबई में हिंदी भाषियों पर हमला: कब तक?

हाल ही में महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों — खासकर मुंबई और उसके आसपास के इलाकों — में जो घटनाएँ सामने आई हैं, वे बेहद चिंता का विषय हैं। यूपी-बिहार जैसे राज्यों से आने वाले मेहनती मजदूर, जो अपने सपनों को पूरा करने मुंबई आते हैं, उन्हें तिरस्कार और हिंसा का सामना करना पड़ रहा है।

क्या उनकी गलती सिर्फ इतनी है कि वे मराठी नहीं बोलते?

एक मजदूर जब सुबह 6 बजे उठकर ईंट ढोता है, धूप में पसीना बहाता है, तो वह शहर के विकास में ही तो हाथ बंटा रहा होता है। क्या उसकी मेहनत सिर्फ इसलिए बेकार हो जाती है क्योंकि वह मराठी नहीं बोलता?

मुझे याद है, एक बार एक ऑटोवाले ने कहा था, “हिंदी बोलने वालों की वजह से ही हमारी नौकरी छिन रही है।” तब मुझे लगा, शायद यह डर है — नौकरी का, पहचान का, अस्तित्व का। लेकिन डर का इलाज हिंसा नहीं, संवाद है। डर को समझने और सुलझाने की ज़रूरत है, न कि उसे नफरत में बदलने की।

भाषा तो सिर्फ भाव व्यक्त करने का माध्यम है

जब एक माँ अपने बच्चे को लोरी सुनाती है, तो वह मराठी, हिंदी, तमिल या बंगाली — किसी भी भाषा में हो सकती है। लेकिन उसका भाव एक ही होता है — ममता। क्या हम उस भावना को नहीं समझ सकते?

राष्ट्र पहले, राज्य बाद में : हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम पहले भारतीय हैं, बाद में मराठी, बिहारी, पंजाबी या कुछ और। यदि हम अपने ही देशवासियों को बाहरी कहने लगेंगे, तो "भारत माता" की तस्वीर अधूरी रह जाएगी। यही एकता है जिसने हमें आज़ादी दिलाई थी — और यही एकता हमें भविष्य में भी टिकाए रखेगी।

आगे का रास्ता क्या हो?

✅  प्रेम, संवाद और समझदारी ही समाधान है।
✅  सरकार और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर नागरिक को सम्मान मिले — चाहे वह किसी भी राज्य का हो।
✅  स्कूलों में सहिष्णुता, एकता और विविधता की शिक्षा को मजबूती से शामिल किया जाना चाहिए।
✅ मीडिया को भी ज़िम्मेदारी से ऐसा माहौल बनाना चाहिए जो जोड़ने वाला हो, तोड़ने वाला नहीं।


निष्कर्ष: एक भारत, सबका भारत

मैं चाहता हूँ कि जब अगली बार कोई मजदूर मुंबई की ट्रेन में सवार हो, तो वह डरा हुआ न हो — बल्कि उसे यह यकीन हो कि वह जहाँ जा रहा है, वहाँ लोग उसे उसकी मेहनत और हुनर से पहचानेंगे, न कि उसकी भाषा से।


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