पहलगाम में खून की होली: बायसरन घाटी में आतंकी हमला, 26 की मौत, 17 घायल, TRF ने ली जिम्मेदारी

पहलगाम में खून की होली: बायसरन घाटी में आतंकी हमला, 26 की मौत, 17 घायल, TRF ने ली जिम्मेदारी

By- Santosh Gupta | Time - 01:44 AM

राज्य और शहर | जम्मू काशमीर | Date - 29/04/25



 

म्मू-कश्मीर की हसीन वादियों में मंगलवार का दिन खून से रंग गया। पहलगाम के नजदीक बायसरन घाटी में दोपहर करीब 3 बजे आतंक का खूनी खेल खेला गया, जब सेना की वर्दी में आए आतंकियों ने अचानक गोलियां बरसाकर 26 निर्दोष लोगों की जान ले ली। इस हमले में 17 लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं। इस वीभत्स हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) ने ली है, जिसे लश्कर-ए-तैयबा का सहयोगी माना जाता है।

गोलियों की गूंज से कांपी घाटी

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, टट्टू पर सवार होकर प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद ले रहे पर्यटकों पर अचानक हमला हुआ। आतंकियों ने पहले लोगों से नाम और धर्म पूछा और फिर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। गोलियों की बौछार से घाटी में अफरा-तफरी मच गई। कई लोगों ने जान बचाने की कोशिश की, लेकिन अधिकांश गोलियों के शिकार बन गए।

सुरक्षाबलों का सर्च ऑपरेशन जारी

हमले के तुरंत बाद सुरक्षा बलों ने पूरे इलाके को घेर लिया और तलाशी अभियान शुरू कर दिया। प्रारंभिक जांच के अनुसार, हमले को छह आतंकियों ने अंजाम दिया — जिनमें दो पाकिस्तानी और चार स्थानीय थे। पुलिस ने तीन संदिग्धों के स्केच जारी किए हैं और आतंकियों की धरपकड़ के लिए व्यापक अभियान चलाया जा रहा है।

साजिश के पीछे पाकिस्तानी आतंकी का हाथ

सूत्रों के मुताबिक, इस हमले की साजिश रचने वाला मास्टरमाइंड सैफुल्लाह खालिद है, जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के कंगनपुर का निवासी है। वह लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद का करीबी बताया जा रहा है। हाल ही में एक पाकिस्तानी कार्यक्रम में भारत के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने की भी जानकारी सामने आई है।

बायसरन घाटी क्यों बनी निशाना?

विशेषज्ञों का मानना है कि बायसरन घाटी को हमला करने के लिए जानबूझकर चुना गया। 'मिनी स्विट्ज़रलैंड' के नाम से मशहूर इस खूबसूरत जगह पर इन दिनों पर्यटकों की भारी भीड़ रहती है। हमला ऐसे वक्त किया गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश दौरे पर थे और अमेरिकी उपराष्ट्रपति भारत के दौरे पर। इससे स्पष्ट होता है कि आतंकी संगठनों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने की साजिश रची थी।

इतिहास खुद को दोहराता दिखा

यह पहली बार नहीं है जब भारत में विदेशी मेहमानों की मौजूदगी के दौरान आतंकी हमला हुआ हो। वर्ष 2000 में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की यात्रा के दौरान चिट्टीसिंहपोरा में 36 सिखों की हत्या कर दी गई थी। 2002 में कालूचक में हमला हुआ, जिसमें 23 जानें गईं। इस बार भी वही पुराना पैटर्न दोहराया गया है।

मृतकों में अधिकतर पर्यटक

इस हमले में जान गंवाने वालों में सबसे अधिक 6 पर्यटक महाराष्ट्र से थे। गुजरात, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल से तीन-तीन लोग मारे गए, जबकि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, ओडिशा, केरल, आंध्र प्रदेश, चंडीगढ़, अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर से एक-एक व्यक्ति की मौत हुई है। एक नेपाली नागरिक की भी जान गई है।

घायलों का इलाज और सरकारी मदद

घायलों को नजदीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है, जबकि गंभीर रूप से घायल कुछ लोगों को श्रीनगर रेफर किया गया है। सरकार ने घायलों के इलाज का पूरा खर्च वहन करने की घोषणा की है। सेना भी हवाई मदद से राहत कार्यों में जुटी हुई है।

सवालों के घेरे में सुरक्षा व्यवस्था

हमले के बाद देशभर में गुस्सा और आक्रोश फैल गया है। सवाल उठ रहे हैं कि इतने संवेदनशील इलाके में सुरक्षा व्यवस्था क्यों फेल हुई? किसकी जिम्मेदारी थी पर्यटकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की? और खुफिया एजेंसियों को हमले के इनपुट क्यों नहीं मिले?

आगे की चुनौती

अब सरकार और सुरक्षा बलों के सामने दोहरी चुनौती है — एक तरफ हमले के गुनहगारों को पकड़ना और दूसरी तरफ बायसरन जैसे टूरिस्ट स्पॉट्स पर सुरक्षा और भरोसे को फिर से बहाल करना। अमरनाथ यात्रा भी नजदीक है और लाखों श्रद्धालु हर साल इसमें शामिल होते हैं। ऐसे में अब और ज्यादा मजबूत सुरक्षा व्यवस्था की जरूरत है, ताकि कश्मीर की वादियां फिर से मुस्कान बिखेर सकें, न कि खून के आंसू।

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