सुप्रीम कोर्ट की आलोचना से भाजपा ने बनाई दूरी, नड्डा बोले – ‘दुबे और शर्मा के निजी विचार’
नई दिल्ली, पीटीआई। सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर की गई तीखी टिप्पणियों से भाजपा ने खुद को अलग कर लिया है। पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने स्पष्ट किया है कि सांसद निशिकांत दुबे और राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा के बयान भाजपा की आधिकारिक राय नहीं हैं, बल्कि उनके निजी विचार हैं।
नड्डा ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा, “न्यायपालिका और मुख्य न्यायाधीश पर की गई टिप्पणियों से भाजपा का कोई लेना-देना नहीं है। पार्टी ऐसी किसी भी टिप्पणी से सहमत नहीं है और हम इन्हें पूरी तरह खारिज करते हैं।”
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भाजपा ने दिया स्पष्ट संदेश – 'न्यायपालिका का सम्मान सर्वोपरि'
जेपी नड्डा ने आगे कहा कि भाजपा हमेशा से ही न्यायपालिका का सम्मान करती रही है। उन्होंने दोहराया कि अदालतें, विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट, भारत के लोकतंत्र का अभिन्न अंग हैं और पार्टी उनके आदेशों को सहर्ष स्वीकार करती है।
भाजपा अध्यक्ष ने यह भी बताया कि उन्होंने पार्टी नेताओं को निर्देश दिया है कि वे भविष्य में इस प्रकार की टिप्पणियों से परहेज करें।
क्या कहा था निशिकांत दुबे ने?
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शनिवार को लोकसभा में बोलते हुए कहा, “अगर सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाना है तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिए।” उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 368 का हवाला देते हुए कहा कि कानून बनाना संसद का कार्य है और अदालत का काम उसकी व्याख्या करना है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर सीमाएं लांघने का आरोप भी लगाया।
दुबे ने यह टिप्पणी उस समय की, जब वक्फ (संशोधन) अधिनियम की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।
क्या है 'वक्फ बाय यूजर' विवाद?
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में वक्फ अधिनियम के कुछ विवादास्पद प्रावधानों पर सवाल उठाए थे, विशेष रूप से ‘वक्फ बाय यूजर’ क्लॉज पर। इस पर दुबे ने सवाल उठाते हुए कहा कि मंदिरों के मामलों में अदालतें दस्तावेज मांगती हैं, लेकिन वक्फ से जुड़े मामलों में ऐसे प्रमाण क्यों नहीं मांगे जा रहे?
सिर्फ दुबे नहीं, उपराष्ट्रपति ने भी जताई थी नाराजगी
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर आपत्ति जताई थी जिसमें राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा तय की गई थी। उन्होंने इसे संविधान के खिलाफ बताया था।
1. क्या भाजपा सुप्रीम कोर्ट की आलोचना कर रही है?
नहीं, भाजपा ने स्पष्ट किया है कि उसके सांसदों की आलोचना व्यक्तिगत विचार हैं, पार्टी इसका समर्थन नहीं करती।
2. वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर विवाद क्यों है?
इस अधिनियम के कुछ प्रावधान, खासकर ‘वक्फ बाय यूजर’, को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए हैं, जिस पर बहस जारी है।
3. क्या सुप्रीम कोर्ट कानून बना सकता है?
नहीं, संविधान के अनुसार कानून बनाना संसद का कार्य है, जबकि सुप्रीम कोर्ट उसकी व्याख्या करता है।
4. क्या भाजपा ने अपने नेताओं को टिप्पणी से रोका है?
हां, जेपी नड्डा ने निर्देश दिया है कि कोई भी नेता न्यायपालिका पर सार्वजनिक टिप्पणी न करें।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट पर भाजपा सांसदों की आलोचना ने एक संवेदनशील बहस को जन्म दिया है, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने समय रहते स्थिति स्पष्ट कर दी है। भाजपा ने जहां अपने नेताओं के बयानों से दूरी बना ली है, वहीं न्यायपालिका के प्रति सम्मान जताकर यह संदेश दिया है कि लोकतंत्र में संतुलन और मर्यादा सर्वोपरि है।
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