बिहार में वोटर लिस्ट की जांच शुरू: क्या चुनाव आयोग निष्पक्ष रहेगा?
भारत का चुनाव आयोग इन दिनों कई सवालों से घिरा हुआ है। अब उसने बिहार में मतदाता सूची यानी वोटर लिस्ट को लेकर एक बड़ा अभियान शुरू किया है। यह प्रक्रिया खासतौर पर इस बात पर केंद्रित है कि सूची में सिर्फ उन्हीं लोगों के नाम हों जो सच में वोट देने के हकदार हैं। लेकिन सवाल ये है—क्या ये काम बिना किसी भेदभाव के होगा?
क्या है यह नया अभियान?
बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग ने "विशेष गहन संशोधन" (Special Intensive Revision - SIR) नाम का अभियान शुरू किया है। इसके तहत 2003 की मतदाता सूची में जिन लोगों का नाम नहीं है, उन्हें फिर से दस्तावेज देकर अपनी पहचान साबित करनी होगी। यह कदम पूरे देश में लागू किया जाएगा, लेकिन शुरुआत बिहार से हो रही है। इसका मकसद है कि वोटर लिस्ट से फर्जी नाम हटाए जाएं और हर असली वोटर का नाम सही तरीके से जोड़ा जाए।
विपक्ष ने उठाए सवाल
कई विपक्षी पार्टियों ने चुनाव आयोग पर निष्पक्ष न होने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सत्ताधारी पार्टी अपने विरोधियों के वोटर लिस्ट से नाम हटवाने की कोशिश करती है। खासतौर पर मुस्लिम वोटरों के नाम काटे जाने की बात सामने आती रही है। टीएमसी ने तो सबूत के साथ दावा किया था कि बंगाल की वोटर लिस्ट में दूसरे राज्यों के लोगों के नाम जोड़े गए। चुनाव आयोग ने इन आरोपों को खारिज किया, लेकिन जवाबों से लोगों की शंकाएं दूर नहीं हो पाईं।
आयोग ने क्या कहा?
चुनाव आयोग ने 1 जुलाई 2025 को "क्वालिफाइंग डेट" मानकर वोटर लिस्ट का यह संशोधन शुरू करने का आदेश दिया है। इसका मतलब है कि जो लोग इस तारीख तक पात्र होंगे, उन्हें ही लिस्ट में शामिल किया जाएगा। आखिरी बार बिहार में इस तरह का संशोधन 2003 में हुआ था। अब लगभग 22 साल बाद फिर से ये प्रक्रिया दोहराई जा रही है।
किन लोगों को दस्तावेज देने होंगे?
- अगर आपका नाम 2003 की लिस्ट में नहीं था, तो आपको कुछ दस्तावेज जमा करने होंगे। नियम इस तरह हैं:
- 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे लोग: जन्म तिथि या जन्म स्थान का प्रमाण
- 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे लोग: माता या पिता के जन्म से जुड़े दस्तावेज
- 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे लोग: माता और पिता दोनों के जन्म से जुड़े दस्तावेज
इन दस्तावेजों में जन्म प्रमाणपत्र, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, 10वीं या 12वीं की मार्कशीट शामिल हो सकती है।
घर-घर जाकर होगी जांच
बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) हर घर जाकर एक फॉर्म देंगे जिसमें नाम, जन्म तिथि, मोबाइल नंबर और परिवार से जुड़ी जानकारी मांगी जाएगी। यह फॉर्म आप उन्हें भरकर दे सकते हैं या ऑनलाइन वेबसाइट/ऐप के जरिए भी जमा कर सकते हैं। BLO कम से कम तीन बार आपके घर आएंगे। अगर आप तय समय में फॉर्म नहीं भरते हैं, तो आपका नाम वोटर लिस्ट से हटाया जा सकता है।
क्यों जरूरी है यह प्रक्रिया?
चुनाव आयोग का कहना है कि शहरों में बार-बार लोग घर बदलते हैं, बहुत से लोग मरने के बाद भी लिस्ट में रहते हैं, और कई जगह अवैध प्रवासी भी वोटर लिस्ट में घुस जाते हैं। बिहार में 2024 के लोकसभा चुनाव में करीब 7.72 करोड़ मतदाता पंजीकृत थे। यह अभियान इन्हीं गड़बड़ियों को ठीक करने की कोशिश है।
विपक्ष की चिंताएं अब भी कायम
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और टीएमसी जैसे दल पहले से ही मतदाता सूची में गड़बड़ी की बात कर रहे हैं। राहुल गांधी ने भी संसद में यह मुद्दा उठाया था। इसके जवाब में चुनाव आयोग ने सभी पार्टियों से कहा है कि वे अपने बूथ लेवल एजेंट (BLA) नियुक्त करें ताकि पूरी प्रक्रिया पर नजर रखी जा सके।
जल्द ही देशभर में लागू होगा
यह अभियान सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहेगा। चुनाव आयोग ने साफ किया है कि आगे चलकर यह पूरे देश में लागू किया जाएगा। इसका कार्यक्रम बाद में जारी किया जाएगा। आयोग ने यह भी बताया कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत की जा रही है।
1952 से 2004 तक 13 बार इस तरह के गहन संशोधन हो चुके हैं। अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि 2025 में आयोग कितनी पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ इस अभियान को पूरा करता है।
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