मुहर्रम 2025: इमाम हुसैन की कुर्बानी की याद में मनाया जाने वाला पवित्र महीना, जानिए कब से शुरू होगा मुहर्रम
मुहर्रम 2025: इमाम हुसैन की कुर्बानी की याद में मनाया जाने वाला पवित्र महीना, जानिए कब से शुरू होगा मुहर्रम
धर्म | मुहर्रम : इस्लाम
यह लेख मुहर्रम 2025 की तिथि, धार्मिक महत्व और इतिहास पर आधारित है। इसमें बताया गया है कि मुहर्रम इस्लामी वर्ष की शुरुआत का पवित्र महीना है, जिसे शिया और सुन्नी समुदाय अलग-अलग भावनाओं के साथ मनाते हैं। लेख में कर्बला की जंग, इमाम हुसैन की शहादत, और आशूरा के दिन का महत्व विस्तार से बताया गया है।
मुहर्रम 2025: इस्लामी नववर्ष की शुरुआत का पवित्र महीना
मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर के सबसे खास महीनों में गिना जाता है, जो हर साल एक नए हिजरी वर्ष की शुरुआत करता है। इस खास महीने को मुहर्रम-उल-हराम के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है – ‘पवित्र और सम्मानित महीना’। पैगंबर हज़रत मोहम्मद ने इस महीने को ‘अल्लाह का पवित्र महीना’ बताया है। यह महीना न सिर्फ एक धार्मिक आरंभ है, बल्कि कई ऐतिहासिक और आध्यात्मिक कारणों से भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। मुहर्रम का हर दिन मानवता, बलिदान और सच्चाई के लिए खड़े होने की प्रेरणा देता हैं।
मुहर्रम क्या है? जानिए इस्लामी नववर्ष के पहले महीने का पवित्रा और अर्थ
मुहर्रम का बेहद पवित्र महीना इस्लामी कैलेंडर में विशेष महत्व रखता है। यह अल्लाह द्वारा बताए गए चार पवित्र महीनों में से एक है, जिनमें युद्ध करना पूरी तरह से निषिद्ध माना गया है। इस महीने को ‘मुहर्रम-उल-हराम’ कहा जाता है, और इसका महत्व खुद इसके नाम में छिपा है — 'मुहर्रम' का शाब्दिक अर्थ है ‘निषिद्ध’। यह वही महीना है जिसे अल्लाह ने पवित्र ठहराया, और कुरआन में इसका ज़िक्र करते हुए बताया कि जब से आसमान और ज़मीन बनाए गए, तब से साल के बारह महीने तय किए गए, जिनमें से चार को पवित्र कहा गया। उन्हीं में एक है मुहर्रम।
पवित्र कुरआन की सूरह तौबा (9:36) में अल्लाह फरमाता है कि इन पवित्र महीनों में इंसान को खुद पर अत्याचार नहीं करना चाहिए, यानी अपने आचरण और नीयत को शुद्ध रखना चाहिए। इस महीने में हर अच्छा या बुरा काम, आम दिनों की तुलना में कहीं ज़्यादा वज़न के साथ लिखा जाता है। इसी वजह से मुसलमानों को चाहिए कि वे मुहर्रम के दौरान अपने किरदार को बेहतर बनाएं, नेक काम करें और गुनाहों से बचें।
मुहर्रम का महत्व केवल धार्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी गहरा है। यही वो महीना है जब पैगंबर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) के नवासे इमाम हुसैन (र.अ.) ने अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाते हुए कर्बला की ज़मीन पर अपनी जान कुर्बान कर दी थी। उनकी शहादत इस्लाम के उस अध्याय को दर्शाती है, जो सत्य, धैर्य और बलिदान की सबसे ऊँची मिसाल है।
आज भी दुनियाभर के मुसलमान इस महीने को बेहद अदब और इबादत के साथ बिताते हैं। कई लोग रोज़ा रखते हैं, दुआ करते हैं और खुद को पापों से दूर रखने की कोशिश करते हैं। क्योंकि यह महीना हमें केवल अतीत की याद नहीं दिलाता, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि ईमान की राह पर चलना आसान नहीं होता, लेकिन वही सच्चा रास्ता है।
मुहर्रम का महीना हमें सब्र, सहनशीलता और इंसाफ के लिए खड़े होने की प्रेरणा देता है। यह समय है अपने भीतर झाँकने का, और अल्लाह के बताए रास्ते पर चलने का, ताकि हम सिर्फ एक अच्छे मुसलमान ही नहीं, बल्कि एक बेहतर इंसान भी बन सकें।
मुहर्रम का इतिहास – कर्बला की जंग और इमाम हुसैन की शहादत
इस्लामिक मान्यता के अनुसार, कर्बला की ऐतिहासिक जंग करीब 1400 साल पहले लड़ी गई थी। यह वही दर्दनाक घटना है, जिसमें पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.) के नवासे इमाम हुसैन (र.अ.) ने अपने परिवार और साथियों के साथ शहादत दी थी। इस्लाम की शुरुआत मदीना से मानी जाती है, लेकिन मदीना से कुछ दूरी पर एक शासक मुआविया का शासन था। मुआविया की मृत्यु के बाद उसके बेटे यज़ीद को शाही गद्दी सौंप दी गई।
यज़ीद एक क्रूर और स्वार्थी शासक था, जिसकी नीयत इस्लाम के सिद्धांतों से मेल नहीं खाती थी। वह अपने तरीके से धर्म को मोड़ना चाहता था और एक ऐसा निज़ाम कायम करना चाहता था जिसमें उसकी सत्ता सर्वोपरि हो। उसने खुद को इस्लाम का खलीफा घोषित किया और चाहता था कि हर मुसलमान उसे इस्लामी नेता के रूप में माने और उसकी आज्ञा का पालन करे।
यज़ीद जानता था कि पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.) के नवासे इमाम हुसैन का सम्मान और प्रभाव बहुत बड़ा है, और उनके अनुयायी दुनिया के कई हिस्सों में फैले हुए हैं। इसी वजह से उसने इमाम हुसैन से यह मांग की कि वे उसके खलीफा होने को स्वीकार करें और अपने समर्थकों को भी यही कहें।
लेकिन इमाम हुसैन ने अन्याय के आगे झुकने से इनकार कर दिया। उन्होंने यज़ीद की बात मानने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद यज़ीद ने दबाव बनाना शुरू किया और अत्याचार की हदें पार कर दीं। उसने न सिर्फ इमाम हुसैन के परिवार पर ज़ुल्म ढाए, बल्कि उनके समर्थकों को भी सताना शुरू कर दिया। यही वो समय था जब कर्बला की लड़ाई का बीज बोया गया — एक ऐसी लड़ाई, जो सिर्फ जमीन के लिए नहीं, बल्कि सच्चाई और इंसाफ़ के लिए लड़ी गई थी।
मुहर्रम की 10 तारीख को यज़ीद की फौज और हुसैन के काफिले के बीच जंग हुई। यज़ीद की फौज बहुत बड़ी थी और हुसैन के साथ सिर्फ 72 लोग थे। हुसैन ने अपने साथियों से कहा कि वे उन्हें छोड़कर चले जाएँ, लेकिन कोई भी नहीं गया। हुसैन जानते थे कि यज़ीद उन्हें ज़िंदा नहीं छोड़ेगा। यज़ीद बहुत ताक़तवर था और उसके पास हथियारों की कोई कमी नहीं थी। हुसैन के पास इतनी ताक़त नहीं थी, लेकिन फिर भी उन्होंने यज़ीद के सामने झुकने से इनकार कर दिया।
हुसैन ने अपने साथियों के साथ मिलकर यज़ीद की फौज का डटकर मुकाबला किया, लेकिन कोई भी हुसैन को छोड़कर वहाँ से नहीं गया। यह इमाम हुसैन और उनके साथियों की वीरता और साहस का प्रतीक है।
10वीं मुहर्रम को यज़ीद ने इमाम हुसैन (र.अ.) और उनके काफिले पर बेरहमी से हमला कर दिया। उसकी फौज ने कर्बला के मैदान में उन्हें चारों तरफ़ से घेर लिया और सरेआम उनके परिवार और साथियों का कत्ल कर दिया। इस जंग में इमाम हुसैन के साथ उनके 18 वर्षीय बेटे अली अकबर, 6 महीने के दूधमुंहे बेटे अली असगर और 7 साल के भतीजे क़ासिम (र.अ.) को भी बेदर्दी से शहीद कर दिया गया।
यज़ीद की सेना ने इमाम हुसैन और उनके काफिले के एक-एक सदस्य को बुरी तरह निशाना बनाया। अंततः 10 मुहर्रम को, इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, इमाम हुसैन और उनके पूरे काफिले की शहादत हुई। हर साल मुहर्रम के मौके पर मुस्लिम समुदाय इमाम हुसैन, उनके परिवार और उनके वफादार साथियों की याद में शोक मनाता है। मातम किया जाता है, ताजिए निकाले जाते हैं, और इंसाफ़ व सच्चाई के लिए दी गई इस कुर्बानी को सलाम पेश किया जाता है।
मुहर्रम 2025 कब है? Muharram 2025 Date in India
मुहर्रम इस्लामी यानी हिजरी कैलेंडर का पहला महीना होता है। इसी महीने से इस्लामिक नए साल की शुरुआत मानी जाती है, और इसी कारण यह महीना बेहद खास और पवित्र माना जाता है। मुहर्रम को इस्लाम के चार सबसे पाक और सम्मानित महीनों में शुमार किया गया है। यह महीना आमतौर पर बकरीद के करीब 20 दिन बाद शुरू होता है। साल 2025 में मुहर्रम की तारीख को लेकर कुछ भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि यह महीना आखिर कब से शुरू होगा। आइए जानते हैं कि मुहर्रम का चांद कब नजर आ सकता है और इस महीने की धार्मिक अहमियत क्या है।
इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना होने के नाते मुहर्रम की शुरुआत नए चांद के दीदार पर निर्भर करती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2025 में मुहर्रम का महीना 27 जून 2025 (शुक्रवार) की शाम से शुरू हो सकता है। हालांकि इसकी अंतिम पुष्टि चांद दिखाई देने के बाद ही होगी, क्योंकि इस्लामी महीनों की गणना चंद्र दृष्टि पर आधारित होती है।
शिया और सुन्नी समुदाय की परंपराएं – कैसे मनाते हैं मुहर्रम
मुहर्रम, इस्लामिक पंचांग का पहला महीना है, जिसे शिया और सुन्नी मुस्लिम समुदाय अलग-अलग तरीकों से मानते हैं। शिया समुदाय के लिए यह महीना दुख और शोक का प्रतीक होता है। वे इस समय विशेष रूप से कर्बला की घटना को याद करते हैं, जहाँ इमाम हुसैन और उनके साथियों ने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। वहीं दूसरी ओर, सुन्नी मुसलमान इस महीने को उपवास, पूजा और आत्मचिंतन के साथ बिताते हैं। वे विशेष रूप से 10वीं तारीख को उपवास रखते हैं, जिसे आशूरा कहा जाता है। इस दिन को कुछ सुन्नी उस ऐतिहासिक घटना से जोड़ते हैं जब ईश्वर ने हज़रत मूसा को फिरौन के अत्याचार से मुक्ति दिलाई थी।
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